अक्सर ये बातें क्लास में कोर्स के दौरान उठती थी की तथ्य की बाते करो दर्शनशास्त्र की नही , हम वास्तविकता में विश्वास करते है नैतिकता में नही,ये तो बस ऊपर ऊपर की बाते है आदि आदि | मै सोचती थी की क्या सच में पर्यावरण सम्बन्धी जितनी बाते यहाँ बताई जा रही है उसमे मूल्य परक प्रश्न शामिल नही है ?और अगर नही है तो हमें इस कोर्स की , पर्यावरण पर की जाने वाली तमाम बातों की, शोधों की जरुरत ही क्या है ?क्या ये सब केवल ज्ञान के प्रति मनुष्य भुख का परिणाम है या कुछ और भी है ?क्या फर्क पड़ता है अगर इस तरह के शोध न हो तो , क्या फर्क पड़ता है अगर कोई गर्म प्रदेश में रहने वाला व्यक्ति शीशों से जड़ित घर बनाये ,क्या फर्क पड़ता है अगर वो अपने ग्रीन हाउस बने घर को ठंढा रखने के लिए दिनभर ए . सी . चलाये ,क्या फर्क पड़ता है अगर वो बेहिसाब बिजली खर्च करे ,उसके पास पैसा है, ताकत है और वो बस उसका इस्तेमाल कर रहा है,हम उसे किस आधार पर गलत कह सकते है ,उसे नियंत्रित करने की कोशिश कर सकते है |किसी को सही या गलत ठहराने का आधार क्या होता है ? हम ये कैसे कह सकते है की आपका आचरण अनुचित है ? कोई तो आधार होगा उचित और अनुचित का निर्धारण करने का ?किसी आलीशान घरों वाली कालोनी से निकलने वाला कूड़ा किसी स्लम कालोनी के पास फ़ेंक देना क्यों गलत लगता है ? वो कौन सी ऐसी बात है जो हमारे अन्दर एक तरह की बेचैनी पैदा करती है और हम बरबस कह पड़ते है कि ये गलत हो रहा है , ये नही होना चाहिए ?शायद ये वो वो बात है ,जो सालों से अनौपचारिक शिक्षा के द्वारा हमारे जहन में अचेतन रूप में बैठी है कि, हमें अपने साथ- साथ अपने पडोसी के हितो का भी ख्याल रखना चाहिए या अपने से कमजोर को सताना नही चाहिए या दूसरो की मदद करनी चाहिए …|ऐसी ही अनेक शिक्षाएं है, जो क़ानूनी नहीं बल्कि नैतिक मांगों की तरह हमारे दिमाग में बैठी रहती है |हम इन नैतिक मांगों को मनवाने के लिए किसी न्यायलय का दरवाजा नही खटखटाते लेकिन अपने सामने वाले से इसकी उम्मीद जरुर करते है , अब इन्ही नैतिक मांगों को कुछ लोग क़ानूनी बनाने की भी मांग करते है जिसे हम जनहित याचिका कह सकते है , न्यायालय के निर्णयों से भी ये परिलक्षित होता है जैसे सभी को शिक्षा का अधिकार है ,स्वच्छ हवा और पानी अधिकार है , जानवरों के भी अधिकार है , स्मारकों को नष्ट करने पर भी सजा हो सकती है इत्यादि|तो क्या सच में पर्यावरण का कोई अंग नैतिकता से विलग है या नैतिकता से विलग होके उपयोगी हो सकता है ? अक्सर मै ये सोचती हूँ …|